कसक …
तुम …
बारिश …
प्यार ….
टिकट …
और बस का टाइम पर छुटना …
कितना टूटा था मन …
रास्ते पर टुकड़े दुकड़े हुयी बूंद …
एक … साबूत बूंद से भरी आंखे ….
रुमाल …. तुम कभी नहीं रखते थे …
कंधे ऊंचे थे तुम्हारे …
तुम्हारी मुस्कराहट से सूखते आँसू ….
उचक कर गले लगने की चाहत ….
और ….
ठीक चार बज कर बीस मिनट पर
टूट गई …
एक शाम …
कस्बायी स्टेशन से
कम्बख्त बस समय से छूट गई ….