“कसक”
यादों के कागज पर ,
जब भी तुम्हारी,
तस्वीर बनाता हूं,
मन तुम्हें ढूंढता है ।
और उठते हैं ,
काले -काले बादल ।
तस्वीर मिट जाती है,
बारिश की बूंदों से ।
रह जाती है
” एक कसक”।
यह जो दूरी है ,
हमारे और तुम्हारे दरमियान ।
हमारे जीवन को ,
बना देती हैं वीरान ।
मैं तुम्हारे पास ,
आना चाहता हूं,
लेकिन रास्ते का कांटा ,
पैरों में चुभ जाता है ।
सारे अरमा ,
लहूलुहान हो जाते हैं।
रह जाती है ,
“एक कसक” ।
आसमां में,
तारों के आने से लेकर,
सूरज की लाली तक,
इंतजार करता हूं तुम्हारा ।
सुबह की पहली,
खिली फूल के साथ ,
मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूं ।
लेकिन उठता है एक तूफान ,
उड़ा ले जाता है ,
सब कुछ ,
रह जाती है
” एक कसक “।