कष्ट हरो प्रभु (भोजपुरी मत्तगयंद सवैया)
विधा:- मत्तगयंद सवैया
विधान:- भगत ×७ + गुरु गुरु
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छंद- ०१
राम रमापति नाथ उमापति कष्ट हरीं जन के त्रिपुरारी।
टूटत बा अब आज मनोबल दूर करीं भय हे! बनवारी।
कोविड नाम महाभट पे बस वार करीं अब हे! प्रतिकारी।
नाथ कृपालु दया कर दीं जन प्रान बचे प्रभु कृष्ण मुरारी।।
छंद-०२
नाथ मनोबल साथ रहे भय दूर करीं अब हे! भयहारी।
रोवत आज गुहार करे सब नाथ हरीं दुविधा बनवारी।
काल खड़ा हर द्वार दयानिधि मांगत बा मनु जान भिखारी।
नाथ विलम्ब न आज करीं भव त्रास हरीं प्रभु कुञ्जविहारी।।
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार