कश्मीर फाइल्स से बाहर।
एक कहानी जो कैद है
कश्मीर की सीमाओं तक।
जग जाहिर होगी
निर्लज सियासी मतलब
और चंद उन्मादियों की बर्बरता!!
वही कहानी जिसे जानकर भी बोलना अभिशाप है
निरक्त देहों की
निशक्तियां,
विरक्ति,
औपचारिकता मात्र है।
वेदना अशेष!!
गवाही
अहिंसा या निरक्तिकरण!
प्रश्न
कायरता की कोख में
विचलित
धर्म हिंसा तथेव च की सार।
उद्बोधन: मौन वेदनाएं।।
याद करते करते
बाहर आओ
उन सीमाओं से
और ढूंढों
मानचित्र
संपूर्ण भारत की।
देखोगे
मीणा बाजारें
मुगलों द्वारा संचालित।
और आठ सौ वर्षों तक
हिंदू स्त्रीयों के भावों का आस्थाओं का दोहन।
कुछ दशकों के कहानी से
बाहर आकर।
जानने की कोशिश करो।
नौ सदियों की कहानी
साढ़े तीन करोड़ हिंदुओं की हत्या
द्रवित नहीं करेगी तुम्हें
बल्कि पत्थर बना देगी।।
दीपक झा रुद्रा”