“कश्मकश जिंदगी की”
“कश्मकश जिंदगी की”
पूरे दिन की भागदौड़ के बाद
रात में बिस्तर पर पड़ जाते हैं
इसके बाद जब नींद हो कोसों दूर
तब दिमाक में अनेकों विचार आते हैं,
आता है एक विचार जिन्दगी का भी
क्यों हम पूरा दिन भागते रहते हैं
हम कहां जा रहे हैं क्या कर रहे हैं
क्या वाकई में हम कुछ कर पाते हैं,
यही सारे सवाल हमारे दिमाक में
उलझन को और अधिक बढ़ाते है
दिल और दिमाक़ की कश्मकश में
हम भी तो दिनभर भागते रहते हैं,
इसमें हमारा तुम्हारा क्या कुसूर
जिंदगी हमें खुद ही भगाती है
दिन की थकान के बाद हारकर
पता नहीं नींद कब आ जाती है,
रात तक माथा पहेली जंजाल बनता
उधेड़बुन में ही रात काट जाती है
इनको लेकर मीनू भी असमंजस में
सुबह दिनचर्या दोबारा चालू हो जाती है।