कश्मकश-ए-हयात
चाहत के च़रागों से दिल के झरोख़ों को हम ऱोशन करते रहे,
हालातों के झोंके उन्हें बार-बार बुझाते रहे,
माज़ी के अब्र ज़ेहन मे उभरते थमते ग़ुम होते रहे,
हर बार उन्हें भुलाने की नाक़ाम कोशिश हम करते रहे,
अहदे वफ़ा की टीस रह- रह कर दिल की वरक़ों में चुभती सालती रही ,
कुछ इस कदर ये कश्मकश-ए-हयात गुज़रती रही,