कश्ती-ए-ज़िंदगी
गर मौज़े बेरहम हो तो कोई सहारा नहीं मिलता!
कश्ती-ए-ज़िंदगी को कोई किनारा नहीं मिलता!
सब ख्वाब कुछ इस तरह से ऐसे बिखर जाते हैं!
फ़िर नज़रो को कोई ख्वाब दुबारा नहीं मिलता!
?अनूप एस?
गर मौज़े बेरहम हो तो कोई सहारा नहीं मिलता!
कश्ती-ए-ज़िंदगी को कोई किनारा नहीं मिलता!
सब ख्वाब कुछ इस तरह से ऐसे बिखर जाते हैं!
फ़िर नज़रो को कोई ख्वाब दुबारा नहीं मिलता!
?अनूप एस?