*** कश्तियाँ ****
कश्तियाँ
किनारे
आती आती
डूब जाती है
उनकी
जिन्हें
मंजिल तक
पहुंचने का
होंसला नहीं
वो सोचते है
कि
मैं किनारे तक
पहुंचूंगा
कि नही
इसी
उधेड़बुन में
वे
अपनी
मंजिल से
भटक जाते है
शायद
इसीलिए
वे
मंजिल तक
नहीं
पहुंच पाते है
और
बीच मझधार
में
डूब जाते हैं ।।
?मधुप बैरागी