कशमकश
दिल में रहती है एक कशमकश सदा ,
कहां है हमारी सब्र ए इंतहा।
इतना की अश्क आंखों से लहू बनकर बहे,
या हम कयामत की देखे राह ।
आखिर क्यों है जमाने में ,
गम बेइंतहा ।
दिल में रहती है एक कशमकश सदा ,
कहां है हमारी सब्र ए इंतहा।
इतना की अश्क आंखों से लहू बनकर बहे,
या हम कयामत की देखे राह ।
आखिर क्यों है जमाने में ,
गम बेइंतहा ।