कशमकश -ए-जिंदगी (ग़ज़ल)
उफ़ ! कितनी कशमकश है जिंदगी में
गर आ जाये ऐसे में मौत तो क्या अच्छा हो।
कमज़र्फ दुनिया औ मतलबी सब रिश्ते ,
काश कोई तो मिले ऐसा जो सच्चा हो।
क्या है मेरी हस्ती ? मैं हूँ भी या नहीं हूँ,
क्या फर्क पड़ता है ,जिसे किसी ने पूछा ना हो।
तकदीर ने ढाए जिसपर सितम पे सितम ,
इतना रोये ,शायद ही कभी दामन सुखा हो।
बस ! अब तोड़ भी डालो सांसो की डोर को ,
इल्तज़ा है मेरी खुदा से ,गर वोह भी रूठा ना हो।