कवि _ जग में तेरा ऊंचा मुकाम
शब्द माला जब गुंथ जाती है।
कवि की कल्पना को जब पंख लग जाते हैं ।
कविता अपने स्वरूप में आ जाती है। कवि जब उड़ान भरता है,
नील गगन से उस पार तक चला जाता है ।
जहां शायद साक्षात ईश्वर रहता है।।
उपमाएं कवि का श्रंगार, प्रकृति उसका उपमान।
देता अपने सृजन में कवि सब को सम्मान ।।
कवि कोमल चित्त, चिंतन उसका मित्र।
कंकड़ पत्थर मिट्टी के ढेले।
अपनी कलम से इनको ठेले।
सारा जग लगता बिन उनके अकेले।
क्यूं न कवि ऐसा राग छेड़े।
जनमत के लग जाए बेड़े।।
है कविवर तू महान _ तेरी कृति महान।
गमगीन चेहरों को देता मुस्कान।
लेखनी को तेरी नहीं थकान।
जग में तेरा ऊंचा मुकाम।।
राजेश व्यास अनुनय