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30 Jan 2018 · 1 min read

कवि हूँ शब्द बुन रहा हूँ मैं

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कवि हूँ प्रकृति की सुन रहा हूँ मैं । ।
कुछ मन में गुन रहा हूँ मैं ।
संवेदनशीलता है मुझमें अधिक
कुछ पाने के लिए कपास सा धुन रहा हूँ मैं ।
बन जाएँ कोई नयी बात तो फिर क्या
इसी लिए नये शब्द चुन रहा हूँ मैं ।
कवि हूँ प्रकृति को सुन रहा हूँ मैं ।
पंक्तियाँ सजती रही हैं बन भाव सुंदर
बिम्ब बनते रहे नव रूप लेकर
नव मनका सा शब्द बुन रहा हूँ मैं ।
चींटी से हाथी तक है वर्ण्य विषय मेरा
शौक भी है नशा है मुझे सृजन का
चिड़ियो की चहक नदी की कल कल
महसूस कर लेता हूँ सुन रहा हूँ मैं ।
कवि हूँ शब्द बुन रहा हूँ मैं ।

विन्ध्यप्रकाश मिश्र ‘विप्र ‘
___________________________________________

Language: Hindi
1 Like · 208 Views
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