शरीर रूपी प्रतीकात्मक उपदेशक भजन
उपदेशक भजन
कवि शिरोमणि पंडित राजेराम भारद्वाज संगीताचार्य जो सूर्यकवि श्री पंडित लख्मीचंद जी प्रणाली के प्रसिद्ध सांगी कवि शिरोमणि पंडित मांगेराम जी के शिष्य है जो जाटू लोहारी (भिवानी) निवासी है | आज मै उनका एक भजन प्रस्तुत कर रहा हु | यह एक उपदेशक भजन है |
भजन – उपदेशक
पवनवेग रथ घोड़े जोड़े गया बैठ सवारी करके |
भूप पुरंजन घुमण चाल्या बण की त्यारी करके || टेक ||
एक मृग कै साथ दिशा दक्षिण मै खेलण शिकार गया था
चलता फिरता भूखा प्यासा हिम्मत हार गया था
बाग डोर छुटी बिछड़ सारथी मित्र यार गया था
सुन्दर बाग़ तला कै जड़ मै पहली बार गया था
तला मै नहाके लेट बाग़ मै गया दोह्फारी करके ||
9 दरवाजे 10 ढयोढ़ी बैठे 4 रुखाली
20 मिले 32 खिले फूल 100 थी झुलण आली
खिलरे बाग़ चमेली चम्पा नहीं चमन का माली
बहु पुरंजनी गैल सखी दश बोली जीजा साली
शर्म का मारया बोल्या कोन्या रिश्तेदारी करके ||
जड़ै आदमी रहण लागज्या उड़ै भाईचारा हो सै
आपा जापा और बुढ़ापा सबनै भारया हो सै
एक पुरंजन 17 दुश्मन साथी 12 हो सै
बखत पड़े मै साथ निभादे वोहे प्यारा हो सै
प्यार मै धोखा पिछ्ताया नुगरे तै यारी करके ||
बाग़ बिच मै शीशमहल आलिशान दिखाई दे था
हूर पदमनी नाचै परिस्तान दिखाई दे था
मैंन गेट मै दो झांकी जिहान दिखाई दे था
आँख खुली जिब सुपना बेईमान दिखाई दे था
राजेराम जमाना दुखिया फूट बीमारी करके ||