कवि महोदय…..
पढ़ पढ़ के कविताएं हमपे भी कवि बनने का जूनून सवार हो गया….
हम इस से भी बढ़िया लिख सकते हैं दिमाग पे यह भूत सवार हो गया…
इस शान से जोश में कलम को मैंने उठा लिया…
जैसे लेखनी में तगमा कोई अभी हो पा लिया…
अभी कुछ सोचते के नींद आँखों में भर आयी….
पी एक-दो चाय की प्याली और एक मस्त ली अंगड़ाई….
लगे खयाली पुलाव पकाने और उसपे तड़के लगाने….
जोश की आग में कलम को ऐसे तपाया….
कि खिचड़ी बन सब बाहर आया…..
मस्त हो के लिखे का अवलोकन जो करने लगे….
पूछो मत क्या क्या अपने अंदर से बेस्वाद शब्द निकलने लगे….
फिर महबूब कि तस्वीर उठायी….
लगा आज तो ग़ज़ल बस निकल ही आयी…
उसकी खूबसूरती में हम इतना खो गए….
फिर क्या था बिना कुछ सोचे..लिखे सो गए…
बड़े बड़े कविओं के फिर संग्रह उठाये….
पर शब्द उनके मेरी समझ न आये….
बीन वो मेरे आगे मुंह फुलाए बजाने लगे…
हम फिर कोई और जुगाड़ बिठाने लगे…..
थक हार के फिर हमने इक तरकीब लगाई…
नामी ग्रामी रचनाओं कि एक सूची बनायी….
कुछ इधर से कुछ उधर से मनभावन अलफ़ाज़ उठाये….
तब कहीं एक सुन्दर सी कविता लिख पाये…
और “चन्दर” फिर कवि बन शान से बाहर आये….
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/सी.एम.शर्मा