कवि बनने का राज
मैं इक सीधा साधा बच्चा था।
पढ़ने में बहुत न अच्छा था।।
तो इक दिन मिली मुझे माया।
संगेमरमर थी उसकी काया।।
देख उसे पेड़ में एक नया फूल खिल गया।
जवानी में फिर मेरा दिल उसपे मचल गया।।
बनाया प्लान मैंने मोहब्बत इज़हार करने का।
सातों जन्म साथ जीने और साथ मरने का।।
प्यार का इज़हार न मैं कर पाया।
गम के बादल लपेटे घर आया।।
उसकी मोहब्बत ने कवि मुझको बना दिया।
फिर श्रृंगार ने ऊँचे शिखर पर पहुँचा दिया।।
सच कहता हूँ दोस्तों अगर वो न होती;तो मैं कवि न होता।
कोई कारण जरूर है जग वालों वरना आज रवि न होता।।
रचयिता-कवि कुलदीप प्रकाश शर्मा”दीपक”
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