कवि नहीं मरता कभी
अब प्रलय की आंधियों से, कवि निडर लड़ता रहेगा।
अब तिमिर की आंख में कवि, दीप बन गड़ता रहेगा।।
पतवार हिम्मत की पकड़, खेता रहेगा नाव कवि।
संकट विकट कट जाएंगे, विस्तीर्ण होगी कीर्ति छवि ।।
मुश्किलों से समर में कवि, अचल बन अड़ता रहेगा।
अब तिमिर की आंख में कवि, दीप बन गड़ता रहेगा।।
ज्वार संकल्पी उठाकर, जिएगा निष्कलुष जीवन।
प्रीति बरसेगी सुपावन, महमहाएगा मुदित मन।।
कवि विटप में फूल-फल बन, उम्रभर झड़ता रहेगा।
अब तिमिर की आंख में कवि, दीप बन गड़ता रहेगा।।
कवि कहे बीड़ा उठाएं, गाय की रक्षा करेंगे।
कवि कहे बीड़ा उठाएं, पीर जन-जन की हरेंगे।।
वैजयंती बन सुजन के, गले कवि पड़ता रहेगा।
अब तिमिर की आंख में कवि, दीप बन गड़ता रहेगा।।
पद्मश्री या पद्मभूषण, या विभूषण भी मिलेगा।
रत्न भारतवर्ष का बन, उर-कमल कवि का खिलेगा।।
विविध विरुदों में विलक्षण, लाल कवि जड़ता रहेगा।
अब तिमिर की आंख में कवि, दीप बन गड़ता रहेगा।।
कवि नहीं मरता कभी, वह गरलपायी बन जिएगा।
कवि नहीं वह, जो न कविता- वारुणी हॅंसकर पिएगा।।
कवि युगों तक कल्पतरु की, खाद बन सड़ता रहेगा।
अब तिमिर की आंख में कवि, दीप बन गड़ता रहेगा।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी