कवि तुम गीत लिखो कुछ ऐसा
कवि तुम गीत लिखो कुछ ऐसा
अक्षर-अक्षर मुखरित होकर
बोले प्रेम की भाषा
कवि तुम …….
कला वही सच्ची कहलाती
जिस चिंतन को चित्त अपनाती
उर-स्पंदन के जैसा
कवि तुम …….
जो झकझोरे भावुकता को
जागृत कर दे मानवता को
जो मनुज में भर दे आशा कवि तुम …….
इंद्रधनुष सा मन हर्षा दे
युग-युग जलकर राह दिखा दे
उन दीपशिखा के जैसा
कवि तुम ………
मौन व्यथा की स्वर बन जाये
राग करुण बन नीर बहाये
दे व्याकुलता में दिलासा
कवि तुम ………
कुंठित मन को प्रेरित कर दे
नयी बोध नयी दृष्टि भर दे
भर दे नव अभिलाषा
कवि तुम …..
भारती दास ✍️