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9 Sep 2020 · 1 min read

कवि की महफ़िल की ख्वाइश

ग़ालिब नही
गंबांरों के लिए
और गजल नही
होशियरों के लिए ।

ये शब्दों का जाल
गबारों से सुलझता नही
ये इश्के मिजाज
होशियरों के दिल उतरता नही ।

चाहिए कोई जफर
मुहब्बत सा सफर
जिसमें लहूलुहान अश्क हों
महबूब की आबरू हों
नजाकत में फना हों
फरियाद में फकीर हों
और हुश्न की इवादत हों ।

फिर हर गली में
ग़ालिब का रोशनदान होगा
हर नजाकत पर
आशिक दिल हलाल होगा
मजारों में अश्क के
दरियां बहेंगे
और हर हुस्न
पीर सा फरियाद होगा ।

फिर चाहे जुहन्नम हो
या जन्नत
हर जगह
वंदे और शैतान की
महफिलों का
इश्किया अंजाम होगा ।

Language: Hindi
5 Likes · 2 Comments · 429 Views
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