कवि की महफ़िल की ख्वाइश
ग़ालिब नही
गंबांरों के लिए
और गजल नही
होशियरों के लिए ।
ये शब्दों का जाल
गबारों से सुलझता नही
ये इश्के मिजाज
होशियरों के दिल उतरता नही ।
चाहिए कोई जफर
मुहब्बत सा सफर
जिसमें लहूलुहान अश्क हों
महबूब की आबरू हों
नजाकत में फना हों
फरियाद में फकीर हों
और हुश्न की इवादत हों ।
फिर हर गली में
ग़ालिब का रोशनदान होगा
हर नजाकत पर
आशिक दिल हलाल होगा
मजारों में अश्क के
दरियां बहेंगे
और हर हुस्न
पीर सा फरियाद होगा ।
फिर चाहे जुहन्नम हो
या जन्नत
हर जगह
वंदे और शैतान की
महफिलों का
इश्किया अंजाम होगा ।