“ कवि की कविता “
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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कविता यूँ
बनती नहीं है
सृजन उसकी
हो जाती है
भावनाओं
की शक्ल में
बातें सब
कह जाती है
कविता यूँ
बनती नहीं है
सृजन उसकी
हो जाती है
भावनाओं
की शक्ल में
बातें सब
कह जाती है
दर्द,दुख
अन्याय की बातें
जब अच्छी
नहीं लगती है
व्यथा का
इज़हार कविता
के छंदों में
हो जाती है
कोई पढे
ना पढे इसको
कलम सब
लिख जातीं हैं
भावनाओं
की शक्ल में
बातें सब
कह जाती है
प्रेम की
परिकल्पना की
चिंतन हम
यहाँ करते हैं
अपने प्रेम
रस गंगा में
डुबकियाँ
लगाते रहते हैं
नौ रसों की
परिधियों में
सदा यह
घूमती रहती है
भावनाओं
की शक्ल में
बातें सब
कह जाती है
जब
असहिष्णुता हमारी
कमर को
कष्ट देती है
मंहगाईयां
सर चढ़ के
जब तांडव
मचाती है
तभी कविता
द्रवित होकर
नयनों से
आँसू बहाती है
भावनाओं
की शक्ल में
बातें सब
कह जाती है
जब राजा
प्रजा की सुध
का संज्ञान
लेना छोड़ दे
जब उनलोगों
के सपनों
को साकार
करना छोड़ दे
तो कविता
के ही क्रंदन
से जनता
रो पड़ती है
भावनाओं
की शक्ल में
बातें सब
कह जाती है
कविता यूँ
बनती नहीं है
सृजन उसकी
हो जाती है
भावनाओं
की शक्ल में
बातें सब
कह जाती है !!
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउंड हेल्थ क्लिनिक
डॉक्टर’स लेन
दुमका
झारखण्ड
भारत
22. 05. 2022.