कवि कहता जन पीर
विषय-“कवि कहता जन पीर”
देख देश की दुर्दशा, साक्ष्य बनेगा कौन?
कवि कहता जन पीर है, जनता बैठी मौन।।
रक्त बूँद को मसि बना, कवि कहता निज पीर।
भूख से लाचार हो, रोए आज फ़कीर।।
दाँव-पेच नेता चलें, जनता हुई अधीर।
मौन अधर का तोड़कर, कवि कहता निज पीर।।
कवि कहता जन पीर को, बना कलम शमशीर।
आम जनों के मध्य फिर, लिखे अश्रु तहरीर।।
निर्धन आकुल भूख से, फूटी है तकदीर।
मानव का हित साधने, कवि कहता जन पीर।।
जनता की आवाज़ बन,दिखलाता तस्वीर।
दर्पण बन साहित्य का, कवि कहता जन पीर।।
कवि कहता जन पीर को, कलम सत्य की थाम।
शब्द उगलते आग हैं, बिन सोचे परिणाम।।
किसके रोके रुक सका, कवि कहता जन पीर।
बाण चला कर शब्द के, करे घाव गंभीर।।
कलई खोलता झूठ की, नहीं करे अभिमान।
कवि कहता जन पीर है, रखता सच का मान।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)