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10 Nov 2018 · 1 min read

कविवर दिनकर

हैं दिनकर खुद ही जो।
भला उन्हें कौन प्रकाशित कर पाए।
नाम ही है दिनकर तो………
धूमिल कैसी हो सकती है उनकी छाया ।
हैं बहुत यहां पर भला ……..
क्या कभी कोई है ?
दिनकर बन पाया।।
ऐसी ओजस्विता शब्दों का तारतम्य।
हर शब्द अपने में पूर्ण और हृदयगम्य।।
हुए वही हैं एकमात्र ….
जिसने कहा मानव जब जोर लगाता है….
तो पत्थर सोना बन जाता है।।

Language: Hindi
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