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2 Nov 2022 · 1 min read

कवित्त ४५

पर्याप्त है
अब यहाँ जीना
आहें भरे ये
जाने कौन ? इसे…

पैसों के बोल हैं
समर्पण के शिकार कौन ?
मानवता तो धूल गई
अब मानव में नहीं

धिक्कारे जाते वो ही
जिन्हें परिस्थिति धुन्ध
पूज्यते वहीं नग्न या पामर
ये उरग डंक-सी, विकृति भी इसे

रंक सुहृदय क्षिति धनुषीय-सी कंचन
श्वेत सब जंजीर में
उठ वहीं पाते जिन्हें उत्साह
इन असंख्य आकर्षणों से
हैं वो पराजित…..

Language: Hindi
1 Like · 148 Views
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