कवित्त छंद
कवित्त छंद
धूप सा कड़क बन छाँव की सड़क बन
उर की धड़क बन,पिता हमें पालता।
डाँट फटकार कर कभी पुचकार कर,
सब कुछ वार कर,वही तो सँभालता।
जीवन आधार बन प्रगति का द्वार बन
ईश का दुलार बन,साँचे में है ढालता।
मेरा आसमान पिता,मेरा अभिमान पिता
जग वरदान पिता,संकटों को टालता।
मीनाक्षी ठाकुर, मिलन विहार
मुरादाबाद, 💐💐💐🙏🏼🙏🏼🙏🏼