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25 Dec 2020 · 1 min read

कविता_तेरह दिन का मिला सिंहासन

तेरह दिन का मिला सिंहासन
??????
वतन मेरा ,नफरत की आग में फुकने ना दूँगा।
कल गूंजेगा हसीं तराना, रुकने ना दूँगा।।
लड़ना भी क्यों न पड़े मौत से चाहे मुझको अब
जाँ से भी प्यारा हसीं, तिरंगा,’देव’ झुकने ना दूँगा।
…………………………………………
राजस्थान की पावन धरा पर,
जो परमाणु से खेला था।
जिसने करगिल जैसी,
दुश्मन की त्रासदी को झेला था।।
जिसने यू एन ओ में भी,
लहराया हिन्दी का परचम,
अन्तिम दर्शन जिसके करने को,
उमड़ पड़ा एक रेला था।
शब्द भी जिसकी बनी ढाल थे,
ऐसा शक्स अकेला था।।
तेरह दिन का मिला सिंहासन,
एक नायाब झमेला था।
दुश्मन की हर बुरी चाल को,
जिसने पल में पहचाना था।
होती है अच्छाई विरोधी में भी,
ये भी जिसने जाना था।।
जिनको लगते सब अपने से,
गैर किसी को ना माना।
द्वेष ईर्ष्या पास ना आते,
प्यार दिलों का अफसाना।।
थे अटल जो रहे अटल,
अटल ही कहलायेंगे।
मातृभूमि के सच्चे लाड़ले,
अब हर लब ये गाएँगे।।

शत शत नमन ?
जय हिंद जय भारत???

शायर देव मेहरानियां
अलवर,राजस्थान
Mob_7891640945

Language: Hindi
1 Like · 259 Views

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