कविता
नारी बनाम मील का पत्थर……!
सादर प्रेषित
सुनो!ईश्वर की रची सर्वाधिक सुंदर कृति है ‘स्त्री’। प्रकृति ने उसे कोमल अवश्य बनाया है , पर उसने परंपराओं से बाहर निकलकर मील के पत्थर कायम किए हैं। लेकिन अपनी खास पहचान बनाने के बाद भी कदम-कदम पर उसके लिए चुनौतियां बनी रहीं हैं।कभी माँ, बहन, बेटी, भाभी, बहु, बीवी आदि रिश्तों को निभाती मील के पत्थर सी एक ही जगह गड़ी और खड़ी रह जाती है।
कभी पुत्र, पति, भाई, पिता को आगे बढ़ना सिखाती है।
कहाती अबला, सबला बन दो वंशों को मार्ग दिखाती है।
भूल कर खुदको नारी, पुरुष को गंतव्य तक पँहुचाती है।
पिपासा से स्व जीवन फ़क़त यूं ही गंवाती है,
परिवार में मील के पत्थर सी, गड़ी ही रह जाती है।
खुली पलकों पर सभी अपनों के, नव ख्वाब सजाती है
नारी है मील का पत्थर, महज़ गड़ी ही रह जाती है।
बिसरता है नज़रों के सामने, जब भूला कोई मंज़र
सुनो नीलम निगाहें,बस धुँधली हो जाती हैं।
नीलम शर्मा