कविता
अभी हूँ जीत से कुछ दूर मगर कुंठित नहीं हूँ मैं
खड़ी हूँ पैरों पर अपने मगर लुंठित नहीं हूँ मैं
हाँ बनाती हूं नित कूप मैं निज प्यास की खातिर
लुटाऊं बाप- दादों का धन,ऐसी किंचित नहीं हूँ मैं।
हूं मैं नीलम, अपनी पहचान मुझको खुद बनानी है,
सबका आशीष है मुझपर, बिल्कुल वंचित नहीं हूं मैं।
नीलम शर्मा