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17 Sep 2016 · 1 min read

कविता

कर्मणि अधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन

भाग इंसान भाग
तेरा भाग्य तभी उठेगा जाग,
सुस्त पड़ा सोता रहेगा
यह जग तेरे आगे निकल जायगा |
यह शरीर मिला है तुझे
इसका कुछ कर्म है
हर अंग का कुछ धर्म है
उसका तू पालन कर |

श्रीकृष्ण ने कहा,
“बिना फल की इच्छा
तू कर्म कर …….”
किन्तु बिना फल की इच्छा,
तेरी कर्म करने की इच्छा जायगी मर |
इसीलिए तू फल की इच्छा कर
और कुछ तो कर्म कर !

जगत में …..
तू है एक विद्यार्थी
सदा एक शिक्षार्थी,
पढ़ना, लिखना, सीखना
फिर हर परीक्षा में पास होना
लेकर प्रभु का नाम
है यही तेरी नियति, तेरा काम |

परीक्षा कक्ष में …
जब तक कापी कलम
तेरे हाथ में हैं,
सब कुछ तेरे वश में हैं |
जो मन करे, तू लिख
न मन करे, न लिख
पर ध्यान रख
जैसा लिखेगा
वैसा फल मिलेगा…
कापी तूने निरीक्षक को दिया,
तेरे हाथ से सब कुछ निकल गया |

अब सब कुछ परीक्षक के हाथ में है |
जितना अंक देता है,
परीक्षा कक्ष में किये
वही तेरा कर्मफल है |
गलत मत समझ तू
श्रीकृष्ण ने सही कहा है,
तेरा काम परीक्षा देना है
परीक्षक का काम फल देना है;
परीक्षा देने(कर्म) का अधिकार
तेरे पास है,
फल देने का अधिकार
परीक्षक के पास है |
सबको अपने कर्मों का
सही फल मिलता है
“जैसा कर्म करता इंसान
वैसा फल देता भगवान् ” |

© कालीपद ‘प्रसाद’

Language: Hindi
1 Like · 392 Views

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