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10 Nov 2017 · 1 min read

कविता

देख कर हाल अचला का,आज घबराया सा है चांद।
कहीं हो जाए न प्रदूषित,सोच, ढूंढता सुरक्षित मांद।

सुना है रहने वाले हैं आकर अब मुझपर भी इंसान,
न बख्शा जिसने जीवन दात्री को, मुझे कहां छोड़गे हैवान।

खामखां प्रेमी कवियों ने, चढ़ाया मुझको इतना झाड़,
मैं भी प्रफुल्लित हो घूमा, मगर मुझपर टूटा है पहाड़।

पहले से क्या मुझपर कुछ कम थे, कुरूप धब्बे काले दागों।
जो अब लेकर आएगा, मनुष्य प्रदूषण की भी ज्वलंत आग।

फैला कर ज़हर हवाओं में,मास्क लगा घर में जा बैठा
वसुधा नहीं रहने अब लायक, रहूंगा चांद पर! कह ऐंठा।

उपाय कोई तो खोजो ताकि, तुझपे न हो प्रदूषण का सितम
चांदनी कैसे बरसाऊंगा मैं ,जब मेरी शीतलता होगी न्यूनतम।

नीलम अब तक तो झाइयां और धब्बे थे मेरे हृदय के अनंत ग़म
पिंपल्स भी अब प्रदूषण से होंगे, बचाएगी कौन सी एंटी मरहम।

नीलम शर्मा

Language: Hindi
337 Views
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