कविता
क्यों पास होकर भी,कन्हैया तू दूर है मुझसे।
अब तो हसरत ही नहीं बाकी,मेरी जीने में।
नहीं रोना है पसंद,सांवरे तू जानता मुझको।
क्या करूं जाता निस उभरता, दर्द सीने में।
आखिर कार टूट ही गया,मेरा फिर हृदय देखो
नाजों से संभाला था,जिसको हमने क़रीने में।
फिर उठा दर्द का समंदर सा,आज सीने में।
नीलम होकर भी कुछ कमी सी है नगीने में।
नीलम शर्मा