कविता
दीप तुम जलते रहो,अंधकार हरते रहो।
नव उल्लास के साथ नई राह चलते रहो।।
मंजिले करीब है दुश्मनों से लड़ते चलो।
काम क्रोध लोभ मोह से नित भिड़ते रहो।।
सत्य का राम साथ है आगे बढ़ते रहो।
रुको नहीं रण में शत्रु संहार करते रहो।।
निष्काम कर्म करो पूर्ण एकाग्र रहो ।
चुनोतियों का नित सामना करते रहो।।
मर्यादा से जीत जीवन संग्राम हँसते रहो।
परहित में सर्वस्व लगा पुरोहित बढ़ते रहो।।
कवि राजेश पुरोहित