कविता
मैंने कभी अभिनय नहीं किया
माँ, बहन, बेटी, दादी होने का
रिश्तों को वास्तविकता से जिया
घिसे-पुराने पिछड़े रिवाजों से
तंग नहीं आई
इनके साथ समझोता कर
उनका नवीनीकरण किया
संयुक्त परिवार में रही
अब सब ने एकल किया
संस्कारों की कल्पना
टूटते परिवार, घरों में दीवार
आज की प्रथा है बस यही
व्यथा है बस यही
एक अबोध बालक ने दूसरे से कहा-
तुम अकेले क्यों हो?
वह बोला- माँ नौकरी करती है
तो क्या! दादी पाल लो
हमने भी पाली है
संस्कार दिवालिया हो गए हैं
नहीं जानती संवरेंगे
कब और कैसे?