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30 Sep 2017 · 1 min read

कविता

प्रत्येक जीव से पूछ रहे, क्या खग मृग मधुकर श्रेनी
जो बसती मम उर- हृदय, क्या तुम देखी सुमृगनैनी।

अधर लगाइ रस दिया सीय पुष्प खिले उपवन में
पिया हिय बसे जानकी,रहे ढूंढ राम वन -वन में।

बोले- दिखती हो प्रति क्षण प्रिय,फिर भी मैं ढूंढ रहा हूं
निश्चल प्रेम पथिक होकर भी कर्तव्यों से विमूढ़ रहा हूं।

सुन,भ्रमर बन अब सोच रहा,क्यों बूंद गिराई इतर-उतर,
तुम चकोर बन हो तड़प रही,मैं ढूंढूं बूंद हर बदली पर।

साथ नहीं हम संग रहकर भी, मेरा यह अपराध नहीं
सती त्यागी सर्वश्रेष्ठ तुम्हीं हो, मैं कोई आदर्श नहीं।

नीलम शर्मा

Language: Hindi
1 Like · 639 Views
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