कविता
सनम ग़म बहुत हैं दर्द-ए-दिल में रहती है सुनो टीस बहुत,
है आह बहुत कराह बहुत रहती है सुनो, रंजिश भी बहुत।
वज्रापात के आघात से हैं मेरे दिल पर, नीलम उसके धोखे
न जाने क्यों फिर भी दिल को है,उसी बेरहम की चाह बहुत।
नीलम शर्मा
सनम ग़म बहुत हैं दर्द-ए-दिल में रहती है सुनो टीस बहुत,
है आह बहुत कराह बहुत रहती है सुनो, रंजिश भी बहुत।
वज्रापात के आघात से हैं मेरे दिल पर, नीलम उसके धोखे
न जाने क्यों फिर भी दिल को है,उसी बेरहम की चाह बहुत।
नीलम शर्मा