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15 Nov 2024 · 1 min read

दिवाली

है दियो की रात और मैं आग सी जलती रहूं
रुई ज्यों तिल में , दुखों के तेल में गलती रहूं

क्या निशा है की जड़े हैं सब किवाड़ों पर सितारे
मेहताबो ने धरा पर धर दिए है सब नजारे
मेरे सीने में मगर तकदीर ने खंजर उतारे

पूछते है लोग किस्सा, पूछते है सौ सवाल
पूछने से क्या पिघलता है कभी पीड़ा का जाल
आह अपनी कौन समझे, कौन जाने जी का हाल

जी में आता है घटा के सारे तेवर तोड़ दूं
ले के एक पत्थर गुमा हर रोशनी का तोड़ हूं
मेहताबो की दमकती चांदनी को मोड़ दूं

(मजाज लखनवी से प्रेरित)

Language: Hindi
2 Likes · 40 Views
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