कविता
लड़कियों को पढ़ने देते हुए चाहा गया
कि वे सिर्फ पढ़ें
किन्तु वे लिखने भी लग गईं
लिखने वाली लड़कियों से चाहा गया कि
लिखें देश प्रेम, भक्ति गीत
किन्तु कुछ प्रेम लिखने लग गईं
प्रेम लिखने वाली लड़कियों से चाहा गया
कि वे बस लिखें, प्रेम कभी न करें
किन्तु वे प्रेम करने लगीं
प्रेम करने वाली लड़कियों से चाहा गया कि वे
सुधार ले प्रेम करने कि चूक
और स्वीकार लें परिवार का चयन
किन्तु वे बगावत करने लगीं
बगावत करती लडकी से चाहा गया कि
वे मान ले खुद को हेयतम
और स्वयं ही बेदखल हो जाएं जीवन से
विलुप्त हो जाएं समाज से
किन्तु वे फिर भी जीती रहीं
लड़कियों को पढ़ने ही नहीं देना था
या पढ़ भी लिया, तो लिखने नहीं देना था
लिख लेने दिया तो, प्रेम करने नहीं देना था
नहीं…! नहीं…! पढ़ने ही नहीं देना था। बस!
बात ख़त्म…!
– शिवा अवस्थी