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11 May 2017 · 1 min read

कविता

वो पुरानी घर-गली
****************

सोचती हूँ तोड़ दूँ बंधन सभी
और मुक्त हो उडूँ गगन की गली

या लौट जाऊँ बन वही नन्ही चिरैया
वो ही बचपन की पुरानी घर-गली

वो सुनहरे खेत ,खेतों में लगी वालियां
और वही से लौटती वो घर की गली

हूँ भले ही बंद इन दरो-दीवार में
मूँद आँखें उडती रही उस घर-गली

दोस्तों का है हुजूम और प्रिय भी साथ ही
फिर क्यूँ भूलती नही वो बचपन की गली

इला सिंह
**********

Language: Hindi
1 Like · 314 Views

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