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13 Feb 2024 · 1 min read

कविता

कविता
संवर जाये जिंदगी
इसके लिए पढ़ना होगा,
आत्मनिर्भर नागरिक,
खुद आप ही गढ़ना होगा।
तोड़ना है खुद ही, खुद को
रोकती जंजीर से
सीखना है तैरना हमें,
मुश्किलों के क्षीर से।
जीत पायेंगें तभी हम,
हारती उम्मीद से,
जाग पायेंगें तभी हम,
ख्वावों की इस नींद से।
हो घना जितना अंधेरा,
हो रोशनी उतनी प्रखर,
जितनी पिसती है हिना,
रंग उसका जाता है निखर।
घाव जितने जिंदगी में,
उतना बढ़ता होंसला,
हर कदम पर ठोकरों से
आगे बढ़ता काफिला।
काम आये दूसरों के,
कहते है उसको हुनर,
मुश्किलो का सामना ही,
करके बनते है निडर।

नमिता शर्मा

Language: Hindi
74 Views
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