कविता
प्यार नहीं बाजारू होता (वीर रस)
प्यार नहीं बाजारू होता,यह अनमोल रत्न भंडार।
य़ह विक्रय की वस्तु नहीं है,इसकी गाथा भव के पार।
य़ह दिल का उद्गार मनोरम,इसकी माया अपरम्पार।
नहीं जानते सब इसको है,यह प्रिय आध्यात्मिक अवतार।
इसका विपणन सदा असंभव,यह ईश्वर का भव्य विचार।
इसमें नहीं वासना होती,यह ईश्वर का है उपहार।
बड़े भाग्य से यह मिलता है,बिन माँगे हीरे का हार।
जो इसको है भोग समझता,उसके मन में है व्यभिचार।
यह अमूर्त है उर की आभा,य़ह है दैवी शिष्टाचार।
यहाँ त्याग का विनिमय होता,संतों का यह है त्योहार।
ब्रह्मा का य़ह रंग अलौकिक,परमानंदक भाव विचार।
धन से कभी न इसको तौलो,यही हृदय का है व्यापार।
नहीं जानते मूर्ख इसे हैं,यह आत्मा का मौलिक द्वार।
परम रम्य अहसास यही है,मनोरोग का यह उपचार।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।