कविता
हृदय
गुलाबी गमकदार उर हो सभी का।
मधुर प्रेम सिंचित हृदय हो सभी का।
रहे भेद का अंत कोमल मनस हो।
वचन से टपकता कन्हैया सरस हो।
सदाचार का पाठ पढ़ना पढ़ाना।
करो कर्म उत्तम सभी को सिखाना।
गुलाबी सुगंधित स्वयं पुष्प बन जा।
रहे भाव निर्मल सदा मनहरन सा।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।