“कविता”
अक्सर लिखती हूँ तुम्हे
हर बात के लिये
लो आज कुछ बात लिखूं तुम्हारे लिए
हर ज़ुबाँ में पहचान लिए,
बिना जिस्म के जान लिए
कभी चुप-खामोश,कभी रुदन-क्रंदन
तो कभी जोश-आक्रोश लिए
तुम हर भाव हर स्वभाव को
खुद में समेट के रखती हो,
तुम जला देती है उम्मीद की हर लौ तो
स्वाह कर देती हो हर निराशा,हर हताशा को
तुम बचपन सी चहकती हो
जवानी सी बहकती हो
चाँद तारे,बारिश,पुरवाईयाँ
बेचैनी,सुकूँ,इश्क़,रुसवाईयाँ
सबकी कहानी कहती हो,
कभी आह बन,कभी वाह बन
कैसे भी उतर ही जाती हो दिल में
न वक़्त की मोहताज तुम
न जिस्म, जगह और न ज़ुबाँ की,
जब भी झिझकता है दिल कुछ कहने से
चंद अल्फ़ाज़ों का बुरक़ा पहन
तुम सब कुछ कह देती हो,
और समेट लेती हो
मेरे बिखरे-बिखरे से मन को
सखी,सहेली,हमसफर,मेरी राज़दार
या मेरे ज़ज़्बातों की पोटली
हमारे रिश्ते का कुछ भी हो शीर्षक
हम बेफिक्रे,बिंदास कहे “इंदु”
हमें पड़ता कोई फर्क नहीं
इस बात का कोई तर्क नहीं😉
मेरी हर दुविधा में सुविधा
मेरी “कविता”😊
“इंदु रिंकी वर्मा”