कविता
मैं कैसे
क्षेत्रपाल शर्मा
कुछ कहा तुम्हारा सुना,
अनसुना करता तो गड़बड़
हिम घाटी में फंसा,
हर जगह एसी ही भड़भड़ ,
समय हुआ शतरंज, फिसल, अचानक मैं जैसे ll
इर्द गिर्द घूमा, भरसक मनुहारें की
पर कांटे -जैसा दिल न पसीजा
मरे न मांचा लेय, तलक नौबत से
तौबा करके भी, मन भरा -न -खीजा
दिवा स्वप्न सब भूत, भयानक, मैं कैसे ll
जो धूल फांककर अपने श्रम से सबल हुआ
छीन झपट में कब आनंद मनाता है
जिसने भोगी हो बिना किए, पीड़ा
पर -नयनों में तिनका , नहीं सुहाता है
बियाबान में एक अकेले पन को
अपने, जी भरकर प्यार करो
उनसे उपजी पीड़ाओं पर ,
मगन रहो , संहार करो
बोल, बोल में पोल, नियामक, मैं कैसे ll
( शान्तिपुरम, अलीगढ़ . 18.04.22)
–