कविता
कविता जब बह निकली
काग़ज़ पर कहाँ उतरी
पहले उतरी अंतर्मन पर
ज्यूँ नाव उतरती पानी पर
शब्दों की पतवार थामे
भाव हौले हौले गोते खाते
रह रह कर मन के गागर
कभी कल्पना के सागर
विचारों की लहर लहर
उत्ताल कभी शांत डगर
नाव से बतियाती जाती
मार हिलोरे गगन चूमती
कभी खंगाल डालती मन
कभी टूट जाती अंतर्मन
फिर बनती एक लहर
मेरी कविता जाती तर
रेखांकन।रेखा