कविता
काम करो भई का करो, तुम इतना ना आराम करो, तन में भी जंग लग जाता है, क्यू इतना फिर आराम करो का करो भई का करो, तुम इतना न आराम करो। सूर्य सा गर चमकना चाहो, तपन अगन की सहना तुम, बेबस लाचारों पर भी दया करो, हराम की रोटी न खाना तुम, काम करो भई काम करो । चंद्रमा मे भी है दाग छुपा, हर जन ने ही है पाप किया, कथन यीशु का करना तुम, शत्रु पर भी तुम दया करो, का करो भई का करो, न इतना तुम आराम करो।।