सृजन की तैयारी
अवरोध, प्रतिरोध, अन्तर्द्वन्द्ध
की तीव्र होती लपटो के बीच
बस चारों ओर धुआँ ही था
जो जीवन में विष घोल रहा था ।
मन ईश्वर से पूँछ रहा था
मेरे साथ ऐसा क्यों ?
शायद मेरा मानवता से
विश्वास कमजोर हो रहा था ।
दमन, विरोध, अपवंचनाएं
मन व्यथित कर रही थी
इन्हीं विरोधों से मन मंथन में
मुझे मेरा पारस रत्न मिला
जिसने सब सुभग कर दिया ।
अकल्पनीय जीवन निधि
उस छाँव में मिली ।
आज फिर मेरे जीवन में
ऐसे ही प्रतिरोध, अवरोध
मन व्यथित कर रहे है
किन्तु मन अब सृष्टि चक्र
इसके नियम, कार्यशैली
बहुत कुछ समझ चुका है
वो जानता है कि
अति तपन, विकर्षण, घर्षण
जीवन में कुछ नव सृजन की
सृष्टि की तैयारी है ।