गिरवी वर्तमान
वो बहुत ही कठिन दौर था
भविष्य नीलामी की कगार पर था।
किंकर्तव्य थी मैं कैसे बचाऊँ इसे ?
तो वर्तमान को गिरवी रख दिया ।
सोंचा कुछ दिन ये सांसे, जिन्दगी
अतीत की छाँव में रह लेंगी ।
पुनः प्रयासों की भूमि जमा कर
हृदय भावों को पल्लवित कर
आज नहीं तो कल अवश्य
अपना वर्तमान फिर सहेज लेंगे ।
पर अतीत के छोटे से कमरे में
जिन्दगी और सांसे दोनों नहीं आईं
जिन्दगी को बाहर निकलना पड़ा ।
जिन्दगी बेदर होकर बदर न हो जाए,
इसलिए मेरी भाव पूँजी थाम लो ।
झ्न अमूल्य भावों को थोड़ा मान दो ।
ताकि मैं अपना वर्तमान पा लूँ
जिन्दगी और सांसें दोनों बचा लूँ ।