श्रम पिता का समाया
श्रम पिता का समाया
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बाप के किरदार में देवता नजर आया
रात तमाम काट के पंखा सेज हिलाया।
उम्र भर लड़ता रहा गर्दिशो की आंधी से
अश्रु पी लिए अपने सदा तुमको हंसाया ।
फाका न आए कभी दुआ रोज करता था
सुबह मजदूरी गया शाम खाना खिलाया।
उमर का पड़ाव ढला गवाह रहीं झुर्रियां
चूल्हा सुलगता रहे फिर बोझा उठाया ।
नियामते रखीं कदम जग की जो वश में थी
सफलता के शिखर में श्रम पिता का समाया।
सुकून की तलाश में पिसता रहा रात दिन
बाद मरने के यार चिराग भी न जलाया ।
आखिरी सांस तक की दुआ जांनिसारो को
मालिक आबाद रखना सदा ये फरमाया।
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शेख जाफर खान