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26 Mar 2022 · 1 min read

कविता

नीर भरी दुख की बदरी बो चली गई
महादेवी जी इस दुनिया मे न रही
सरस्वती के आप तो अनुरूप थी
वेदना की आप तो प्रतिमूर्ति थी
वेदना भी स्वम रुदन मचा रही
महादेवी जी इस दुनिया मे न रही
क्यों अपर्चित् पंथ उनको भाया था
दाग भी उनने अकेला पाया था
दाग बिन वेदाग अर्थी चली गई
नीर भरी दुख की बदरी बो चली गई
महादेवी जी इस दुनिया मे न रही
सुनीता गुप्ता कानपुर उत्तर प्रदेश

Language: Hindi
1 Comment · 132 Views
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