कविता
??नारी??
हां में नारी हूं, अबला नहीं, सबला नारी हूं,समझ कर कमजोर मुझको,
किया आघात मुझ पर,
पर!में लाचार नहीं,
मुझे दूधिया तलवार समझो।
हां में नारी हूं अबला नहीं सबलानारी हूं
क ई रूप हें नारी के,कभी माता ,बहन
कभी दुर्गा, लक्ष्मी और काली,
कभी चण्डी हे बन जाती,
मत समझो कमजोर मुझे तुम,
सशक्त हे साकार भी,
जब भी कोईविपदा आती,
नारी शक्ति का भण्डार है बन जाती।
हां में नारी हूं—-
कभी पहाड़ों पे माउन्ट एवरेस्ट में,
अपना झंडा फहराती,
कभी आसमान में उड़ कर,
फाइटर प्लेन उड़ाती,
हां में नारी हूं—–
सदा करो सम्मान इनका,
निरादर मत करो इनका,
ईश्वर की उत्कृष्ट कृति हे नारी,
शत,-शत नमन करो इनका।
हां में नारी हूं—–
मानव को जन्म देकर,मां कहलाने वाली,
एक पहचान देने वाली जननी हे नारी,
बच्चों के लिए, हर दुख पीड़ा सह जाती हे नारी,
उफ!भी वही करती सह जाती हे वेदना सारी,
हां में नारी हूं अबला नहीं, सबला शक्ति शाली हूं नारी।।
सुषमा सिंह उर्मि
कानपुर