*कविता*
कविता के रस छंद अलंकार ।
यही हैं उसके सोलह सिंगार ।।
रस से रसमय हो जाती प्यारी कविता ।
छंदों में छंदमय हो जाती न्यारी कविता ।
अलंकार से अलंकृत हो जाती सारी कविता ।
श्रृंगारित हो वात्सल्य दर्शाती दुलारी कविता ।
कभी क्रोधित हो रौद्र रूप दिखलाती कलिकाली कविता ।
कभी घृणा से वीभत्स हो जाती दुखियारी कविता ।
कभी उत्साह से वीरता जगाती बलशाली कविता ।
प्रकृति के अद्भुत रंग भर विस्मय का बोध कराती कविता ।
मौन मुखरित हो हृदय में हास्य जगाती कविता ।
भय से भयातुर हो शांत हो जाती कविता ।
शोक संतप्त ह्रदय में करुणा जगाती कविता ।
ओम् का निनाद कर जीवन आनंद दिलाती कविता ।
ओमप्रकाश भारती ओम्