कविता
“वंदना”
मातु सरस्वती जय वीणा पाणी ।
जय हो जय देवी ,विद्यारूपिणी ।
सप्त स्वरों की तू है महारानी
वेद पुरान भी महिमा न जानी ।
“माँ”दीप जला दे सप्त सूरों की
रोम रोम संगीत, मनोहारिणी ।
शरणागत होती, रक्षा मे तत्पर
संसार सार माँ आधाररूपिणी
कमल समान नेत्रवाली माता
ज्ञानदात्री माँ तू हंसवाहिनी ।
पद मात्राऐं जो भूल गई हूँ
क्षमा कर देना आनंददायिनी ।
प्रमिलाश्री